hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जिंदगी एक रेलवे स्टेशन है

आरती


(मारीना त्स्तेतावेवा को याद करते हुए)

तुम्हें नहीं देखा पर जाना
और महसूस कर रही हूँ
जैसे ओस का होना
मोती-सा
बेशकीमती होती हैं स्मृतियाँ
हमेशा साथ रहती हैं
कुछ रेखाएँ कुछ अक्श कुछ शद
जेहन में बहते रहते हैं
जैसे धमनियों में रक्त बहता है
स्पंदन, धड़कनों को हवा देता है जिस तरह
मारीना! न होकर भी तुम्हारा होना
ऐसा ही है

मैं महसूस करना चाहती हूँ
तुम्हारी एक एक वेदना
जहाँ से कविता सिरजती रही
उस जज्बे को, जिसने वनवासों को फलाँगते
पार की जीवनयात्रा
कागज कलम भी सँभाले हुए
कठिन है उस क्रूर भूख की तड़फ
जिसने कब किसको छोड़ा
तुम्हें आखिर क्यूँ छोड़ती
खूनी पंजों में दबाए प्रियजनों को
अट्टहास करती रही
सच, भूख ब्रह्मांड भर यातना का दूसरा नाम है
स्थिर संकल्प तुम्हारे
बेचैन हुई तड़पी
टूटी जुड़ी बार बार
अड़ियल कलम
स्वाभिमान की लकीरों के पार नहीं गई
यह क्रूरता, उस क्रूरता के वाबस्ता
दरअसल घुटने न टेकने का ऐलान थी

जिंदगी एक रेल्वे स्टेशन है
चली जाऊँगी जल्दी...
कहाँ... नहीं बताऊँगी
मास्को से प्राग
प्राग से पेरिस... फिर मास्को
छुक छुक करती चलती रही रेलगाड़ी
और एक दिन बेआवाज हो गई
चली गई चिरविश्राम के लिए
बिना सिगनल दिए
अपना सामान छोड़कर
मैं प्लेटफार्म पर खड़ी
तुम्हारी परछाई छूने का प्रयास कर रही हूँ


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में आरती की रचनाएँ